राजगढ़ अपने रियासतकालीन रोचक व शौर्य से भरे किस्सों के लिए मशहूर है। यहां की तहसील खिलचीपुर असल में राजगढ़ व नरसिंहगढ़ से भी पुरानी रियासत है। अजमेर में ईसवी सन 784के खीची राजवंश की स्थापना करने वाले राजा मानिक राय व कनक राय के वंशजों ने खिलचीपुर में सदियों तक राज किया। असल में 474 साल पहले यानि सन 1544 में तत्कालीन राजा उग्रसेन खीची खिलचीपुर आए थे। जहां उन्होंने किला, महल सहित मंदिर और दूसरी इमारतें बनाई। चित्तौड़ के राजा राणा सांगा के भानजे पालण के बेटे थे। उनके वंशज अजमेर से जालौर और गढ़गागरौन होते हुए खिलचीपुर पहुंचे थे। जिले की अन्य रियासतों में खिलचीपुर ही ऐसी रियासत हैं, जहां अब भी राजवंश अपने पुराने महल में रह रहा है।
रियासत के दीवान आनंदराम बख्शी और मंत्री रूपराम बोहरा अंग्रेजों से मिले हुए थे। यह पता चलने पर कुंवर चैन सिंह ने इन दोनों को मार दिया। मंत्री रूपराम के भाई ने इसकी की शिकायत कलकत्ता स्थित गवर्नर जनरल से की, जिसके निर्देश पर पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को भोपाल के नजदीक बैरसिया में एक बैठक के लिए बुलाया। बैठक में मैडॉक ने कुंवर चैन सिंह को हत्या के अभियोग से बचाने के लिए दो शर्तें रखीं। पहली शर्त थी कि नरसिंहगढ़ रियासत, अंग्रेजों की अधीनता स्वीकारे। दूसरी शर्त थी कि क्षेत्र में पैदा होनेवाली अफीम की पूरी फसल सिर्फ अंग्रेजों को ही बेची जाए। कुंवर चैन सिंह द्वारा दोनों ही शर्तें ठुकरा देने पर मैडॉक ने उन्हें 24 जून 1824 को सीहोर पहुंचने का आदेश दिया। अंग्रेजों की बदनीयती का अंदेशा होने के बाद भी कुंवर चैन सिंह नरसिंहगढ़ से अपने विश्वस्त साथी सारंगपुर निवासी हिम्मत खां और बहादुर खां सहित 43 सैनिकों के साथ सीहोर पहुंचे। जहां पॉलिटिकल एजेंट मैडॉक और अंग्रेज सैनिकों से उनकी जमकर मुठभेड़ हुई। कुंवर चैन सिंह और उनके मुट्ठी भर विश्वस्त साथियों ने शस्त्रों से सुसज्जित अंग्रेजों की फौज से डटकर मुकाबला किया। घंटों चली लड़ाई में अंग्रेजों के तोपखाने ओर बंदूकों के सामने कुंवर चैन सिंह और उनके जांबाज लड़ाके डटे रहे।
यह अभयारण्य नरसिंहगढ़ अभयारण्य के नाम से जाना जाता है। अभयारण्य का मुख्य आकर्षण का केन्द्र चिड़ीखो तालाब है जिसका स्वरूप चिडि़या के आकार का है। इस तालाब को नरसिंहगढ़ के महाराजा श्री विक्रमसिंह द्वारा सन् 1935 में बनाया गया था। तालाब का क्षेत्रफल 22 हेक्टेयर है व इसका केचमेंट एरिया 28 वर्ग किलोमीटर है। तालाब चारों ओर शाक, बेलाऐं एवं वृक्षों से आच्छादित पहाडियों से घिरा है। इन्ही पहाडियों में विभिन्न प्रकार के वन्यप्राणी निवास करते है जो अक्सर भ्रमण के दौरान नजर आते रहते है। गर्मी में यह एकमात्र बड़ा जल स्त्रोत है तथा तालाब कभी भी नहीं सूखता है इसी कारण यहां लगभग तीन किलोमीटर के आसपास के जंगली जानवर रोज सुबह व शाम के समय पानी पीने आते है व यहीं से उन्हे तालाब के किनारे विचरण करते देखे जा सकते है।